शायरी, कविता, गीत, ग़ज़ल
Monday, March 16, 2020
टूट कर चाहना, चाह कर टूटना फ़र्क दोनों में बस जगहंसाई का है
दिल दिया ही नहीं उसने मुझको कभी यार फिर क्यूँ ये क़िस्सा बेवफ़ाई का है
तपन तन्हा
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